आधुनिक प्रबंध
काव्यों के रचनात्मक आयाम उनके कवियों की सार्थक रचनाधर्मिता के ही प्रमाण है । इन
प्रबंध काव्यों का प्रमुख सरोकार युगीन चेतना व मानवीय संवेदना की सशक्त
अभिव्यक्ति है । मानवीय व्यक्तित्व, मानवीय प्रकृति व मानवीय सत्ता के
संघर्ष व जिजीविषा के मूल्यांकन को प्रबंध काव्यकारों ने विविध रूपों में व्यक्त
किया है । पारम्परिक कथाबंधों का नयी अर्थवत्ता के साथ ग्रहण इन आधुनिक प्रबंध
काव्यों का महत्वपूर्ण आयाम है । ‘‘इसके अन्तर्गत अतीत के क्रम में वर्तमान
को स्थापित करते हुए, परम्परा के परिप्रेक्ष्य में समकालिकता का मूल्यांकन कर
जीवनगत महत्वपूर्ण तथ्य एवं निष्कर्ष प्ररूतुत किये है ।’’[1]
संवेदना ही वह तत्व है जो कि कवि को
काव्य रचना हेतु अग्रसर करती है । संवेदन जितना तीव्र होगा, उतना ही उसका
तेज असर होगा और उसकी अभिव्यक्ति भी उसकी शक्ति व क्षमता के साथ हो सकेगी ।’’[2] अतः साहित्यकार एक संवेदनशील सृजक है । वह मानवीय अनुभूति
को अभिव्यक्त करने की क्षमता रखता हैं । नरेश मेहता जी का प्रबंध काव्य इसका
प्रमाण है । आधुनिक कवि श्रीनरेश मेहता ने प्रबंध काव्यों में मानव के उन चिंरतन
भावों की अभिव्यक्ति की है, जो युग परिवर्तन के साथ अपना स्वरूप व संदर्भ तो बदलते जा
रहे है, लेकिन इनकी महता व प्रकृति आज भी शाश्वत उपस्थिति का संकेत
करती है । नरेश मेहता के प्रबंध काव्य ‘संशय की एक रात’,
‘प्रवाद पर्व’
रामकथा आधारित तथा ‘महाप्रस्थान’ महाभारतीय कथा
आधारित है । इन काव्यों का प्रमुख प्रतिपाद्य मानवीय संवेदना की अभिव्यक्ति है ।
इनका काव्य पाठक को संवेदना से जोड़कर सत्य की अनुभूति कराता है । मेहता जी की
रचनाएं पाठक के संवेदन को गहराई और विस्तार प्रदान करती है ।
परम्परागत प्रबंध काव्यों की बाह्यता व
स्थूलता को त्यागकर नरेश मेहता ने आधुनिेक चेतना के सूक्ष्म व संश्लिष्ट रूप को ही
रचनाओं का आधार बनाया है । सम्पूर्ण कथा के स्थान पर किसी प्रसंग, घटना अथवा
संदर्भ विशेष को लेकर ही प्रबंध रचनाएँ अधिक हो रही है । वैचारिक स्थापनाएँ, मनोगत भावों का
अन्तर्द्वन्द, आधुनिक भाव दशाएँ आदि की प्रस्तुति ज्यों-ज्यों बढ़ती जा
रही है, प्रबंधों की कथागत स्थिति भी स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर
बढ़ रही है ।’’[3] आधुनिक मानव की संवेदनाओं की
अभिव्यंजना हेतु कवि नये प्रयोग करता है । युग जीवन के यथार्थ को चित्रित व
अभिव्यक्त करना आधुनिक प्रबंध काव्यों का मूल उद्देश्य है ।
नरेश मेहता के प्रबंध काव्य ‘संशय की एक रात’ की रात में न
तो ऐतिहासिक राम है और न भविष्य प्रणेता कहे जा सकते है । वे आज के कवि के लिए
आधुनिक व्यक्ति की संशयात्मक मानसिकता व संकल्प-विकल्प की द्वन्द्वात्मक स्थिति को
अभिव्यक्त करने का माध्यम है । राम के माध्यम से नरेश मेहता ने मानवीय संवेदन को
स्पष्ट किया है । लक्ष्मीकान्त वर्मा इस सन्दर्भ में लिखते हैं- ‘‘आधुनिक
विसंगतियों का राम में आरोपण तथा उनके माध्यम से अपने युगों की समस्याओं के समाधान
के रूप में विपरीत मूल्यों, बोधों ओैर मान्यताओं के बीच एक सही दृष्टि अपनाने की
प्रेरणा ही मूल अभीष्ट है ।’’[4] राम जब सीता की मुक्ति चाहते है युद्ध
से पूर्व युद्ध जन्य विध्वंस के बारे में पूर्व विचार कर चिंतामग्न है । उस समय
स्थिति का चित्रण इस काव्य में हुआ है । विभिन्न समस्याओं की अन्तर्द्वन्दता से
जुझता राम स्वयं को सामूहिक निर्णय को सौपने पर भी पूर्ण आश्वस्त नही हो पाता ।
यही मानवीय संवेदना और वैयक्तिक विसंगति यहां स्पष्ट है जो आधुनिक मानव की भी
विसंगति है-
***
‘‘यदि मै मात्र कर्म हूँ/तो यह कर्म का
संशय है/ यदि मैं मात्र क्षण हूँ तो यह क्षण का संशय है/
यदि मैं मात्र
घटना हूँ / तो यह घटना का संशय है ।’’[6]
अतः स्पष्ट है
कि मानव की नियति संशयात्मक है । इस काव्य में मन की इस संशयात्मक संवेदना को
अभिव्यक्ति मिली है । जो आाधुनिक मानव की मानसिक स्थिति,
मनोव्यथा,
आत्मसंशय की अभिव्यक्ति है । ‘‘मानस संवेदना
और अनुभूति के आधार पर मूल्यों का अन्वेषण करता है । इस कृति के माध्यम से नरेश मेहता
ने राम को एक प्रज्ञा प्रतीक के रूप में आधुनिक मानव का प्रतिनिधि बनाकर युगीन
संशय वैषम्य और विंसगतियों के द्वारा युगानुरूप नयी धारणाए और नए मूल्य खोजने की
चेष्टा की है आधुनिकता संस्कृति का एक नया दौर है । इस दौर में राम का मिथक
अलग-अलग संवेदनात्मक और विचारात्मक संदर्भों से जुड़कर अभिव्यक्त हुआ है, नरेश
मेहता ने ‘संशय की एक रात’ में प्रस्तुत किया है । ‘संशय की एक रात’ मूल्यों और
मान्यताओं के उहापोह को प्रस्तुत करने वाला काव्य है । परस्पर संघर्ष, विपरीत मूल्यों
और मान्यताओं को समकालीन मूल्यों की कसौटी पर कसते हुए एक फेर-बदल किया है ।’’[7]
नरेश मेहता का ‘महाप्रस्थान’
प्रबंध काव्य महाभारत के युद्धोपरांत
पाँडवों द्वारा द्रौपदी सहित स्वर्गारोहण हेतु प्रस्थान के प्रसंग पर आधारित है ।
इस प्रबंध काव्य में मेहता जी ने मानवीय संवेदनाओं को महाभारतीय समाज और युद्ध की पृष्ठभूमि
में चित्रित किया है । ‘‘प्रत्येक मनुष्य के भीतर आरत्रिक रामायण सम्पन्न होती है तो
आक्षण अपनक परिवेश में वह महाभारत का साक्षात करता है । अपनी प्रकृति, संस्कार, गुण, धर्म तथा
स्वत्व के अनुरूप् हर इन कथा गाथाओं में हम अपना पक्ष निर्धारित करते है ।’’[8] राजव्यवस्था,
युद्ध जनित परिस्थितियां व उसके कारण, राज्य की गरिमा
के समक्ष मानव का अस्तित्व, जीवन मूल्य आदि भी काव्य में अभिव्यक्त हुए है । ‘‘युधिष्ठिर के
महाप्रस्थापिक आख्यानक के माध्यम से कवि ने जिन संदर्भों को उठाया है उसमें चाहे
अन्धे धृतराष्ट्र की कुटिलता हो या भीष्म और द्रोण जैसे आचार्यों का असत्य का
पक्षधर होना हो या दुर्योधन का कुटिल दंभ अठारह दिन का महायुद्ध जिसमें विजयी और
पराजित सभी अकिंचन से हो गए । आज के संदर्भ में उतना ही प्रांसगिक है ।’’[9] आधुनिक सन्दर्भ में ‘महाप्रस्थान’ जिस कथ्य को
चित्रित करता है वह विशिष्ट होते हुए भी साधारण मानव की संवेदनाओं की अनुभूति एवं
अभिव्यक्ति ही कही जा सकती है । उदाहरणार्थ-
‘‘किसी भी साम्राज्य ये बड़ा है/ एक बंधु/
एक अनाम मनुष्य! /मुझे मनुष्य में विराजे देवता में/ सदा विश्वास रहा है ।’’[10]
राज्य के नहीं
धर्म के नियमों पर समाज आधारित है/ राज्य पर अंकुश बने रहने के लिए/ धर्म और विचार
को/ स्वतंत्र रहने दो पार्थ!’’[12]
मेहता जी ने
महाप्रस्थान में व्यक्ति की आन्तरिक भावाभिव्यक्ति,
सुख-दुःख,
धर्म,
व्यवस्था,
नियम,
समाज आदि को आधुनिक स्वरूप प्रदान किया
है । मानव मन की उद्गार, संवेदना को सहजता से अभिव्यक्त किया है । ‘‘राज्य व्यवस्था
की अमानवीय क्रूरता निरंकुशता युद्धों की विनाशकारी भयावहता और व्यक्ति की महत्ता
पर कवि ने सम्यक प्रकाश डाला है । इस पर्व में मूल महाभारत और व्यक्ति की महत्ता
पर कवि ने सम्यक प्रकाश डाला है ।’’[13] इस कृति के चिन्तन का मूल केन्द्र
बिन्दु युधिष्ठिर है जिसके द्वारा कवि ने तत्कालीन संवेदना और स्थिति को स्पष्ट
किया है साथ ही समकालीन बोध भी प्रस्तुत किया है इस प्रकार युधिष्ठिर मूल्यान्वेषी
व्यक्ति है ।
‘प्रवाद पर्व’
नरेश मेहता का तीसरा प्रबंध काव्य है ।
इस काव्य मे कवि ने व्यक्ति की अभिव्यक्तिजन्य स्वतंत्रता के मूल अधिकार के
संरक्षण हेतु राज्य एवं व्यक्ति संबंधों को प्रस्तुत किया है । रामायण के सीता
निर्वासन के प्रसंग का कारण एक धोबी का प्रवाद था । आधुनिकता के सन्दर्भ में कवि
ने व्यक्ति की इयत्ता, मानवीय गरिमा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व उसके मूल्य
आदि के रूप् में अनेक समसामयिक संदर्भों को कृति का कथ्य बनाया है । वर्तमान मानव
की संवेदनात्मक समस्याओं की अभिव्यक्ति कवि ने इस प्रबंध काव्य में की है । मानव
आपातकालीन स्थितियों, दबावों, तनावों और नियंत्रणों में अक्षुण्ण रह सके, इस हेतु प्रवाद
पर्व का सर्जन हुआ । उदाहरणार्थ-
‘‘जब भी/ ऐसी तर्जनी उठती है/ तब/
राजतंत्र और इतिहास कोलाहल से भर उठते है/ क्योंकि/ वह मात्र अंगुली नहीं होती
राम! उसका एक प्रतिऐतिहासिक व्यक्तित्व होता है/ महत्व भी ।’’[14]
‘‘मनवीय स्वातंत्र्य/ मानवीय भाषा और/
मानवीय अभिव्यक्ति के प्रतिइतिहास का सामना/ वैसी ही / मानवीय प्रतिगरिमा के साथ
करना होगा लक्ष्मण!’’[15]
‘‘राज्य और न्याय को / प्रतिष्ठापित होने
दो भरत! यदि ये तत्वदर्शी नहीं होते तो एक दिन/ निश्चय ही ये भय के प्रतीक बन
जायेंगें ।’’[16]
नरेश मेहता के
आधुनिक राम ने मानव की प्रत्येक अभिव्यक्ति को महत्व प्रदान किया है । मानव के
राज्य के प्रति भय का निष्कासन कर निर्भय बनाया है । जो अपनी संवेदनाओं को राजा के
समक्ष प्रकट कर सके तथा राज्य उसके कथनों को,
अभिव्यक्ति को सम्मान प्रदान करे । इस
हेतु श्री राम को अपने दाम्पत्य संबंधों की बलि भी देनी पड़ी है । केवल एक साधारण
मानव के स्वतंत्र कथन को सम्मान अर्थात प्रजा के अभिव्यक्ति के सम्मान हेतु । नरेश
जी ने इन प्रसंगों मे महामानव को साधारण मानव की संवेदना का संस्पर्शी घोषित किया
है ।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि युग जीवन
के यथार्थ एवं मानवीय संवेदना की अभिव्यक्ति आधुनिक प्रबंध काव्यों का प्रमुख
उद्देश्य है । आधुनिकता ने सर्वप्रथम युग व युग की आवश्यकता व मांग को आंकलित किया
है । वर्तमान प्रबंध काव्य रचनाओं का स्वरूप जितना सूक्ष्म व लघु हुआ है उतना ही
विस्तृत विशद व गहन अभिव्यक्ति ये काव्य कर रहे है । नरेश मेहता ने प्रबंध काव्यों
में युगीन संवेदना, संघर्षशील मानवास्था,
मूल्यगत संक्रमण, युगीन यथार्थ व
नवनिर्मित मूल्यबोध आदि संदभों में चित्रित किया है । मानवीय संवेदन की इस
परिचर्चा में मानवीय नियति को किसी संकुचित भाग्यवादी दृष्टि से नहीं अपितु व्यापक
आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देखा गया है ।
[2]डॉ. नवीन
चन्द्र लोहनी,
अज्ञेय की
काव्य चेतना के आयाम,
पृष्ठ सं. 91, राधा पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली, 1996
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देखती रह जाये दुनिया
बनानी ऐसी मिसाल है
जीत कर रहना है अब तो
आन का सवाल हैं…….
इरादे नेक,मकसद पाक
पावन साफ है
सब है बराबर
ऐसा ये इन्साफ है
दिन्दगी के गम मिटा दे ऐसा इक ख्याल है
जीत कर रहना है अब तो आन का सवाल है,
चन्द चेहरो ने अपनी मॉ को ही ललकारा है
जीत कर उनको यह कह दो यह लो जबाब हमारा है
हम भी अपनी भारत मॉ के वीर सच्चे लाल है
जीत कर रहना है अब तो आन का सवाल है,
आज अपने इरादों को इतना फौलादी बना दो
जीतने का जोश भरकर पूरी दुनिया को हिला दो
हम सब की परिछा का अब आ गया इक साल है
जीत कर रहना है अब तो आन का सवाल है,
खुद पर भरोसा करने वाले आगे निकल जाऐंगे
ऑख उठाने वाले देखते रह जाऐंगे
वीर संग चलने वाले हो जाते निहाल है
जीत कर रहना है अब तो आन का सवाल है….
मु.जुबेर हुसैन
बी.एस. सी (पॉर्ट-1)
एस.बी.एस.एस.पी.एस.जनजातीय महाविद्यालय,पथरगामा
गोड्डा,झारखण्ड,814147
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देखती रह जाये दुनिया
बनानी ऐसी मिसाल है
जीत कर रहना है अब तो
आन का सवाल हैं…….
इरादे नेक,मकसद पाक
पावन साफ है
सब है बराबर
ऐसा ये इन्साफ है
दिन्दगी के गम मिटा दे ऐसा इक ख्याल है
जीत कर रहना है अब तो आन का सवाल है,
चन्द चेहरो ने अपनी मॉ को ही ललकारा है
जीत कर उनको यह कह दो यह लो जबाब हमारा है
हम भी अपनी भारत मॉ के वीर सच्चे लाल है
जीत कर रहना है अब तो आन का सवाल है,
आज अपने इरादों को इतना फौलादी बना दो
जीतने का जोश भरकर पूरी दुनिया को हिला दो
हम सब की परिछा का अब आ गया इक साल है
जीत कर रहना है अब तो आन का सवाल है,
खुद पर भरोसा करने वाले आगे निकल जाऐंगे
ऑख उठाने वाले देखते रह जाऐंगे
वीर संग चलने वाले हो जाते निहाल है
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