चर्चा में

  
वे जो चर्चा में हैं,
उन्हें पूरा भरोसा है कि वे अपनी बदौलत चर्चा में हैं ।

वे जो चर्चा में नहीं हैं,
उन्हें पक्का विश्वास कि जान बूझ कर उन्हें
चर्चा के बहार किया गया है ।
वरना क्या बात कर नहीं आती’

समकालीनता की न्याय बुद्धि पर भरोसा है उन्हें
जो चर्चा में हैं ।
जो चर्चा में नहीं हैं उन्हें न्याय के लिए
आलोचना के नए उपकरणों की दरकार है ।

साहित्य की सामाजिकता का व्यवहारिक ज्ञान रखते हैं
जो चर्चा में हैं,
जो चर्चा में नहीं हैं,
मन ही मन अपने कमज़ोर जनसम्पर्क पर कुढ़ते हैं,
तेलएक परम प्रिय शब्द है उनका,
जिसे क्रिया-पद में हथियार और संज्ञा में कालिख की तरह
उछालते हैं वे चर्चितो की ओर ।

वे जो चर्चा में हैं
न बुरा देखते हैं न सुनते न बोलते
मिठबोलुआ ।
शराफ़त अदब का पर्याय है उनके लिए
जो चर्चा में नहीं हैं,
शराफत के धुप्पल से दूर मनबढ़ कुचर्चा में रस-रंजित रहते हैं ।

चर्चित होने के सूत्र
साहित्य के पालने में ही मिल गए थे उन चिकने पात होनहार चर्चितों को
वे जो चर्चा में नहीं हैं, उन्हें बुढ़ापे में पता चला कि वे
चर्चा में क्यों नहीं हैं ?

जो चर्चा में हैं, वे गलचौरा तो करते हैं
मगर आतिशी चर्चाओं में चुप ही रहते हैं
फेस बुकिया लाइक की तरह ।
जो चर्चा में नहीं हैं, वे बोलक्कड टिप्पड़ियां जड़ते
आ बैल मुझे मार की तरह, दुश्मनी नेवतते 
भाषा अक्सर जूतामार हो जाती है उनकी
अपने उपद्रवी मूल्य का इल्म है उन्हें ।

जो चर्चा में नहीं हैं
वे अक्सर आलोचना के सामंती संस्कारों
और साहित्य पर बाज़ार के प्रभावों की चर्चा करते हैं ।
गरिमा गुरूर और ग़ैरत की महीन परिभाषाओं में न्यस्त रहते हैं ।
चर्चा के जुगाड़ में अकिंचन व्यस्त रहते हैं ,
जीभ और तलवों की पक्की पहचान होती है उन्हें

वे जो चर्चा में हैं उन्हें यहाँऔर वहाँमें सेतु बनाने आता है,
तानाशाह बाजऔकात तानाशाह नहीं होता उनके लिए
बाकी जो चर्चा में नहीं हैं
वे न यहाँके हैं न वहाँके ।

जो चर्चा में हैं उन्हें पता है,
कि चर्चा में रहने के लिए क्या-क्या नहीं करना चाहिए
जो चर्चा में नहीं हैं उन्हें भी पता है कि
चर्चा में होने के लिए क्या-क्या करना चाहिए ।
साहित्य की भौतिकता के वाम-पुजारी चर्चा में हैं
जो चर्चा में नहीं हैं उन्हें साहित्य का आध्यात्म आकर्षित करता है ।

समकालीनता का गहरा सम्मान है उनके मन में
वे ज़न्नत की हकीकत से दूर रहते हैं,
तभी चर्चा में हैं ।

जो चर्चा में नहीं हैं वे समय के सतहीपन पर
जुगनुओं की तरह आक्रामक हैं,
आने वाले कल पर भरोसा है उन्हें
दुखी की आत्मा की पुकार की तरह ।
समय का सूप साहित्य को फटक-पछोरकर सार-सार गह लेगा
एक दिन,
उस दिन वे हों न हों पर चर्चा में अवश्य होंगे । .

देवेन्द्र आर्य,
A -127 आवास विकास कालोनी, शाहपुर
गोरखपुर -273006 , मोबाइल - 09794840990


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